Thursday, September 25, 2008

है रमजान प्रेम-मुहब्बत का महीना

है रमजान प्रेम-मुहब्बत का महीना।
है रमजान मज़हब याद दिलाने का महीना॥
है रमजान ज़श्न मनाने का महीना।
है रमजान ज़श्न मनाने का महीना॥
पाक रखेंगे इसे अल्लाह के नाम।
नहीं करेंगे हम इसे बदनाम॥
है प्रेम का महीना रमजान।
है प्रेम का महीना रमजान॥
आया है ईद प्रेम-भाईचारा का सौगात लेकर।
मनाएंगे इसे वैर व कटुता का भाव भुलाकर॥
मिलजुल मनाएंगे ईद।
नहीं करेंगे मांस खाने की जिद॥
तोड़ेंगे हिंसा का रश्म।
मनाएंगे मिलकर ज़श्न॥
हम सब लें आज ये कसम।
हम सब लें आज ये कसम॥


--महेश कुमार वर्मा


 

Sunday, September 14, 2008

सत्य-धर्म

थोड़ा सा भी झूठ इंसान को नष्ट कर देता है, जैसे दूध में एक बूंद जहर।

-- वेद
साँच बराबर धर्म्म नहीं झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदै साँच है ताके हिरदै आप॥

जो मनुष्य यह चाहता है कि प्रभु सदा मेरे साथ रहे उसे सदा सदा सत्य काम ही सेवन करना चाहिए। भागवान कहते हैं कि मैं केवल सत्यप्रिय लोगों के ही साथ रहता हूँ।

-- संतवाणी

सदा सच बोलना चाहिए। कलियुग में सत्य का आश्रय लेने के बाद और किसी साधन-भजन की आवश्यकता नहीं। सत्य ही कलियुग की तपस्या है।

-- संतवाणी

सत्य के पाये पर खड़े रहने से जो आनंद मिलता है उसकी तुलना अन्य किसी प्रकार के आनंद से नहीं की जा सकती।

-- संतवाणी

सज्जन को झूठ जहर-सा लगता है और दुर्जन को सच विष के समान लगता है। वे इनसे वैसे ही दूर भागते हैं जैसे आग से पारा।

-- संतवाणी

झूठ सबसे बड़ा पाप है। झूठ की थैली में अन्य सभी पाप समा सकते हैं।

झूठ को छोड़ दो तो तुम्हारे अन्य पाप-कर्म धीरे-धीरे स्वतः ही छुट जाएंगे।

अगर किसी आदमी ने सच्चे धर्म को तोड़ दिया है, झूठ बोलता है और परलोक की हँसी उड़ाता है तो वह किसी पाप के करने से नहीं रुक सकता।

-- भागवान बुद्ध (धम्मपद से )

जो मिथ्या भाषण करता है, नरक को जाता है और वह भी जो एक काम को करके कहता है कि वह मैंने नहीं किया, मरने पर दोनों की दशा एक ही होती है। परलोक में वह बुरे कर्म के आदमी कहलाते हैं।

-- भागवान बुद्ध (धम्मपद से)

सच बोलो, क्रोध के वश में कभी ना आओ, अगर कोई कुछ माँगे तो उसको दे दो। इन तीन साधनों के द्वारा तुम देवताओं के पास पहुँच जाओगे।

-- भागवान बुद्ध (धम्मपद से)

धर्म ही एक ऐसा मित्र है जो कि प्राणी के मर जाने पर भी उसके साथ जाता है, बाकी तो इस देह के साथ ही नष्ट हो जाते हैं।

-- हितोपदेश से

---------------------

LS-57 / 04101202

Wednesday, September 10, 2008

पवित्र बनो

  • पवित्र बनो क्योंकि मैं पवित्र हूँ।
-- बाईबिल
  • व्यभिचार, चोरी, नशा, हिंसा, झूठ तजना चाहिए।
इन पंच पापों से हमेशा बचकर रहना चाहिए।
-- महर्षि मेँहीँ
  • हिंसा -- किसी भी जीव को मन, वचन या कर्म से दुःख या कष्ट देना ही हिंसा है।

-------------------

LS-57 / 04101202


Tuesday, September 9, 2008

सत्य-वचन

  • जो मनुष्य यह चाहता है कि प्रभु सदा मेरे साथ रहे, उसे सत्य का ही सेवन करना चाहिए। भगवान कहते हैं कि मैं केवल सत्यप्रिय लोगों के ही साथ रहता हूँ।

  • सदा सच बोलना चाहिए। कलियुग में सत्य का आश्रय लेने के बाद और किसी साधन भजन की आवश्यकता नहीं। सत्य ही कलियुग की तपस्या है।

---- संतवाणी

------------

LS-52 / ०४१०१००१

Monday, September 8, 2008

हित या अहित

जिस कार्य के होने से किसी का अहित हो तो उस कार्य का न होना उसके हित में है। उसी प्रकार जिस कार्य के न होने से किसी का अहित हो तो उस कार्य के होने को उसके हित में कार्य का होना कहेंगे।

किसी भी कार्य के परिणाम में यह हो सकता है कि एक नजर से वहां लाभ हुआ हो व अन्य दृष्टि से हानि हुआ हो। पर स्थिति के अनुसार आवश्यकता तथा हुए लाभ व हानि के तुलनात्मक अध्ययन कर ही यह एक बात (निर्णय के रूप में) कहा जा सकता है कि वहां लाभ हुआ या हानि।

-------------------
LS-52 / 04101001

Saturday, August 23, 2008

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सबों को ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सबों को ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ

************************************************************************




आप भी इसका इस्तेमाल करें


आप भी इसका इस्तेमाल करें

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने हमें हमेशा अपने कर्म करते रहने की ही शिक्षा दिए हैं। अतः श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व को हमें यों ही नहीं बिताना चाहिए बल्कि इस अवसर पर हमें अपने कर्म को करते हुए अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।

Sunday, June 29, 2008

भाग्य से ज्यादा कर्म को स्थान

जी हाँ, ईश्वर एक शक्ति है जो सारे जगत को चलाता है तथा सारे जगत उन्हीं की लीला है। हमें ईश्वर पर श्रद्धा ,विश्वाश रखना चाहिए।
मैं ईश्वर पर विश्वास करता हूँ। पर मैं ईश्वर की पूजा के लिए बह्याडम्बर को नहीं मानता हूँ। बल्कि सच्चे ह्रदय से ईश्वर में विश्वास को मानता हूँ।
किसी भी कार्य में मैं भाग्य से ज्यादा कर्म को स्थान देता हूँ। कितने लोग किसी भी कार्य में ख़ुद कर्म करते नहीं व सिर्फ उसको भाग्य पर छोड़ देते हैं और कार्य सफल न होने पर भाग्य को कोसते हैं यह उचित नहीं है। याद रखनी चाहिए कि जो मेरे भाग्य में है, यदि मैं कर्म न करूँ तो वह भी मुझे नहीं मिलेगा।
यदि मेरा कोई कार्य सफल नहीं हुआ तो हमें ईश्वर या भाग्य को नहीं कोसना चाहिए बल्कि हमें वह कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए कि किस कारण से हम सफल नहीं हो सके।
-- महेश

Saturday, March 15, 2008

सत्य

सत्य का मतलब इतना ही नहीं कि रोज के व्यव्हार में असत्य न बोलना या असत्य आचरण नहीं करना। लेकिन सत्य ही परमेश्वर है और इसके सिवा दूसरा कुछ नहीं। इस सत्य की खोज और पूजा के लिए ही दूसरे सब नियमों की जरुरत रहती है और उसी में से वे पैदा होते हैं। ये सत्य के पुजारी अपने माने हुए देशहित के लिए भी कभी असत्य न बोलें या उसका आचरण न करें। सत्य के लिए वे प्रहलाद की तरह अपने माता-पिता और बुजुर्गों की आज्ञा भी विनयपूर्वक भंग करने में अपना धर्मं समझें।
--- महत्मा गाँधी

Monday, March 10, 2008

सभा में सब मृतक समान

जिस सभा में अधर्म से धर्म, असत्य से सत्य, सब सभासदों के देखते हुए मारा जाता है उस सभा में सब मृतक के समान हैं। जानो उनमें कोई भी नहीं जीता।

- स्वामी दयानंद सरस्वती

Sunday, March 9, 2008

लोकनिंदा

लोकनिंदा से डरना चाहिए क्योंकि यह डर मनुष्य को बुरे कर्मों से बचाता है। हाँ, यदि लोकनिंदा कर्तव्य के मार्ग में बाधा जाए तो इससे डरना कायरता है।

संतवाणी

****************

अपने काम से काम कहने से काम नहीं चलेगा

हमें अपने काम से काम, अपने मतलब से मतलब कहने मात्र से काम नहीं चल सकता। ऐसा करने से बुरों का विरोध न हो सकेगा और वे मनमानी करके अपनी दुष्टता बढाते हुए दूसरे लोगों के लिए दिन-दिन अधिक भयंकर होते चलेंगे। उसी प्रकार सज्जनों के कार्यों में प्रोत्साहन या सहयोग न दिया जाय तो वे भी निराश होकर चुप बैठे रहेंगे और उनके कार्यों से अनेकों को जो लाभ हो सकते थे वे न हो सकेंगे।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

Monday, February 18, 2008

सेवा की सच्ची आराधना

  • सुनने का अभ्यास पैदा करो। सुनने से पाप-पुण्य की, धर्म-अधर्म की तथा सत्य-असत्य की जानकारी होती है। मनुष्य को जीने की कला आती है। एक-दूसरे के प्रति मन में बैठी भ्रांतियों का निवारण होता है। अतः सुनो।
  • सुने हुए को याद रखने की आदत डालो। एक कान से सुनकर दूसरे से मत निकालो। जिस प्रकार कुएँ के जल में भरी हुई छलनी कुएँ से ऊपर आने तक खाली हो जाती है, ऐसे ही सुने हुए जीवन तथ्यों को भूल जाने का भूल मत करो। यदि सत्संग या विद्या मन्दिर में सुना हुआ पाठ स्मरण नहीं रखोगे, तो जीवन भर कभी उन्नति व प्रगति नहीं कर सकोगे।
  • नए दोषों से सदा बचते रहो। भ्रष्टाचार एवं पापाचार एक भयंकर दलदल है। इस दलदल से सदा दूर रहो। बुराई से बचकर रहनेवाला बुराई के फल से सदा अछूता रहता है। वह सदा निर्भयता के साथ जाता है।
  • सदा इस बात को याद रखो - यदि हम किसी की सहायता करेंगे तो समय आने पर हमारी सहायता करनेवाला भी कोई अवश्य पैदा हो जाएगा। यदि आज हमारी कोई सहायता नहीं कर रहा है तो इसका अर्थ स्पष्ट है कि हमने भी कभी किसी की सहायता नहीं की। सेवा ग्लानी रहित होकर करनी चाहिए। यदि सेवक रोगी व्यक्ति से घृणा करता है, तो धर्मराज के दरबार में उसकी सेवा स्वीकार नहीं की जाती। नर-सेवा को नारायण-सेवा समझाना ही सेवा की सच्ची आराधना है।

-- भगवान् महावीर