सत्य का मतलब इतना ही नहीं कि रोज के व्यव्हार में असत्य न बोलना या असत्य आचरण नहीं करना। लेकिन सत्य ही परमेश्वर है और इसके सिवा दूसरा कुछ नहीं। इस सत्य की खोज और पूजा के लिए ही दूसरे सब नियमों की जरुरत रहती है और उसी में से वे पैदा होते हैं। ये सत्य के पुजारी अपने माने हुए देशहित के लिए भी कभी असत्य न बोलें या उसका आचरण न करें। सत्य के लिए वे प्रहलाद की तरह अपने माता-पिता और बुजुर्गों की आज्ञा भी विनयपूर्वक भंग करने में अपना धर्मं समझें।
--- महत्मा गाँधी