- सुनने का अभ्यास पैदा करो। सुनने से पाप-पुण्य की, धर्म-अधर्म की तथा सत्य-असत्य की जानकारी होती है। मनुष्य को जीने की कला आती है। एक-दूसरे के प्रति मन में बैठी भ्रांतियों का निवारण होता है। अतः सुनो।
- सुने हुए को याद रखने की आदत डालो। एक कान से सुनकर दूसरे से मत निकालो। जिस प्रकार कुएँ के जल में भरी हुई छलनी कुएँ से ऊपर आने तक खाली हो जाती है, ऐसे ही सुने हुए जीवन तथ्यों को भूल जाने का भूल मत करो। यदि सत्संग या विद्या मन्दिर में सुना हुआ पाठ स्मरण नहीं रखोगे, तो जीवन भर कभी उन्नति व प्रगति नहीं कर सकोगे।
- नए दोषों से सदा बचते रहो। भ्रष्टाचार एवं पापाचार एक भयंकर दलदल है। इस दलदल से सदा दूर रहो। बुराई से बचकर रहनेवाला बुराई के फल से सदा अछूता रहता है। वह सदा निर्भयता के साथ जाता है।
- सदा इस बात को याद रखो - यदि हम किसी की सहायता करेंगे तो समय आने पर हमारी सहायता करनेवाला भी कोई अवश्य पैदा हो जाएगा। यदि आज हमारी कोई सहायता नहीं कर रहा है तो इसका अर्थ स्पष्ट है कि हमने भी कभी किसी की सहायता नहीं की। सेवा ग्लानी रहित होकर करनी चाहिए। यदि सेवक रोगी व्यक्ति से घृणा करता है, तो धर्मराज के दरबार में उसकी सेवा स्वीकार नहीं की जाती। नर-सेवा को नारायण-सेवा समझाना ही सेवा की सच्ची आराधना है।
-- भगवान् महावीर