Saturday, March 15, 2008

सत्य

सत्य का मतलब इतना ही नहीं कि रोज के व्यव्हार में असत्य न बोलना या असत्य आचरण नहीं करना। लेकिन सत्य ही परमेश्वर है और इसके सिवा दूसरा कुछ नहीं। इस सत्य की खोज और पूजा के लिए ही दूसरे सब नियमों की जरुरत रहती है और उसी में से वे पैदा होते हैं। ये सत्य के पुजारी अपने माने हुए देशहित के लिए भी कभी असत्य न बोलें या उसका आचरण न करें। सत्य के लिए वे प्रहलाद की तरह अपने माता-पिता और बुजुर्गों की आज्ञा भी विनयपूर्वक भंग करने में अपना धर्मं समझें।
--- महत्मा गाँधी

Monday, March 10, 2008

सभा में सब मृतक समान

जिस सभा में अधर्म से धर्म, असत्य से सत्य, सब सभासदों के देखते हुए मारा जाता है उस सभा में सब मृतक के समान हैं। जानो उनमें कोई भी नहीं जीता।

- स्वामी दयानंद सरस्वती

Sunday, March 9, 2008

लोकनिंदा

लोकनिंदा से डरना चाहिए क्योंकि यह डर मनुष्य को बुरे कर्मों से बचाता है। हाँ, यदि लोकनिंदा कर्तव्य के मार्ग में बाधा जाए तो इससे डरना कायरता है।

संतवाणी

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अपने काम से काम कहने से काम नहीं चलेगा

हमें अपने काम से काम, अपने मतलब से मतलब कहने मात्र से काम नहीं चल सकता। ऐसा करने से बुरों का विरोध न हो सकेगा और वे मनमानी करके अपनी दुष्टता बढाते हुए दूसरे लोगों के लिए दिन-दिन अधिक भयंकर होते चलेंगे। उसी प्रकार सज्जनों के कार्यों में प्रोत्साहन या सहयोग न दिया जाय तो वे भी निराश होकर चुप बैठे रहेंगे और उनके कार्यों से अनेकों को जो लाभ हो सकते थे वे न हो सकेंगे।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य