Showing posts with label सत्य-धर्म. Show all posts
Showing posts with label सत्य-धर्म. Show all posts

Sunday, September 14, 2008

सत्य-धर्म

थोड़ा सा भी झूठ इंसान को नष्ट कर देता है, जैसे दूध में एक बूंद जहर।

-- वेद
साँच बराबर धर्म्म नहीं झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदै साँच है ताके हिरदै आप॥

जो मनुष्य यह चाहता है कि प्रभु सदा मेरे साथ रहे उसे सदा सदा सत्य काम ही सेवन करना चाहिए। भागवान कहते हैं कि मैं केवल सत्यप्रिय लोगों के ही साथ रहता हूँ।

-- संतवाणी

सदा सच बोलना चाहिए। कलियुग में सत्य का आश्रय लेने के बाद और किसी साधन-भजन की आवश्यकता नहीं। सत्य ही कलियुग की तपस्या है।

-- संतवाणी

सत्य के पाये पर खड़े रहने से जो आनंद मिलता है उसकी तुलना अन्य किसी प्रकार के आनंद से नहीं की जा सकती।

-- संतवाणी

सज्जन को झूठ जहर-सा लगता है और दुर्जन को सच विष के समान लगता है। वे इनसे वैसे ही दूर भागते हैं जैसे आग से पारा।

-- संतवाणी

झूठ सबसे बड़ा पाप है। झूठ की थैली में अन्य सभी पाप समा सकते हैं।

झूठ को छोड़ दो तो तुम्हारे अन्य पाप-कर्म धीरे-धीरे स्वतः ही छुट जाएंगे।

अगर किसी आदमी ने सच्चे धर्म को तोड़ दिया है, झूठ बोलता है और परलोक की हँसी उड़ाता है तो वह किसी पाप के करने से नहीं रुक सकता।

-- भागवान बुद्ध (धम्मपद से )

जो मिथ्या भाषण करता है, नरक को जाता है और वह भी जो एक काम को करके कहता है कि वह मैंने नहीं किया, मरने पर दोनों की दशा एक ही होती है। परलोक में वह बुरे कर्म के आदमी कहलाते हैं।

-- भागवान बुद्ध (धम्मपद से)

सच बोलो, क्रोध के वश में कभी ना आओ, अगर कोई कुछ माँगे तो उसको दे दो। इन तीन साधनों के द्वारा तुम देवताओं के पास पहुँच जाओगे।

-- भागवान बुद्ध (धम्मपद से)

धर्म ही एक ऐसा मित्र है जो कि प्राणी के मर जाने पर भी उसके साथ जाता है, बाकी तो इस देह के साथ ही नष्ट हो जाते हैं।

-- हितोपदेश से

---------------------

LS-57 / 04101202